संपादकीय
नारी शक्ति ! सरकार के साथ साथ जिम्मेदारी परिवार और समाज की भी
इस साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड समारोह में तीन विषयों में से एक “नारी शक्ति” भी थीम है ।
2011 की जनगणना, भारत में कुल आबादी का 48.5 प्रतिशत महिलाओं की आबादी की गणना करती है, समाज की बदलती गतिशीलता में महिला सशक्तिकरण बहुत प्रासंगिक और बहुत महत्वपूर्ण है। मन की बात के 82वें संस्करण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी महिला सशक्तिकरण की बात कही है। शिक्षा महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, यह समाज में उनकी स्थिति को बदलने में भी सक्षम बनाती है। शिक्षा बेहतर तरीके से निर्णय लेने के लिए आत्मविश्वास को सक्षम और निर्मित करती है। स्किलिंग और माइक्रो फाइनेंस महिलाओं को आर्थिक रूप से स्थिर बना सकते हैं और इसलिए वह अब समाज में दूसरों पर निर्भर नहीं हैं। महिलाओं को शिक्षा देने का अर्थ है पूरे परिवार को शिक्षा देना।
लेकिन महिला शिक्षा और सशक्तिकरण सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं ,बल्कि लड़की के माँ – बाप की ज़िम्मेदारी कहीं ज्यादा है। सरकार रास्ता दिखाती है जिसपर चलना एक लड़की अपने माँ – बाप का हाथ पकड़ कर सीखती है। सिर्फ शिक्षा नहीं , बल्कि हर लड़की को आर्थिक सक्षमता देना उतना ही ज़रूरी है , जितना शिक्षा देना। शिक्षा सिर्फ इसलिए नहीं की लड़केवालों का ‘डिमांड ‘ है। देश के हर माँ – बाप के लिए बेटी का आर्थिक स्वाबलंबन ‘प्राथमिकता’ होनी चाहिए , ना कि ‘बेटी की शादी’ । शादी के नाम पर फ़िज़ूलख़र्ची से बचे और ‘बेटियों के नाम’ का बैंक अकाउंट खोले और पैसे अकाउंट में डाले। बेटियों के राय को महत्त्व दे और उनसे पूछ ले कि आखिर वो शादी करना चाहती भी है या नहीं और अगर चाहती है तो कोर्ट मैरेज या फिर कोई डेस्टिनेशन वेडिंग ? खामियां निकालने वाले समाज से खुद भी बचें और बेटियों को भी बचाएं। याद रहे सशक्त बेटियां तो मज़बूत समाज और मज़बूत समाज तो सशक्त राष्ट्र।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, वर्किंग वीमेन होस्टल्स ,MUDRA योजना – पिछले आठ सालों ने ऐसी कई योजनाओं के साथ महिला उत्थान का सिलसिला देश में देखने को मिल रहा है। लैंगिक समानता के बारे में बढ़ा हुआ ज्ञान, आत्मविश्वास और जागरूकता सशक्तिकरण प्रक्रिया के बेमिसाल तत्त्व है । ये घटक शिक्षा के माध्यम से विकसित होते हैं। शिक्षित महिला अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होगी और जब महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी तो उन्हें भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा। उन्हें भी हक़ है एक गरिमा के साथ ज़िंदगी बसर करने का । यह सवाल फिर नहीं आना चाहिए -‘ तुम्हें तो पराये घर जाना और तुम पराये घर से आयी हो !’
